राजनीति कभी सीधे-सादे फॉर्मूले से नहीं चलती। बिहार की सियासत तो ऐसे झूलती है जैसे कोई झूला पार्क में बच्चों को झुला रहा हो। 2025 विधानसभा चुनावों में एनडीए गठबंधन ने सीटों का जो फार्मूला बनाया है, उसने जेडीयू के “बड़े भाई” वाली महिमा पर सीधा तीर चलाया है।
बीते दो दशकों से नीतीश कुमार की जेडीयू पार्टी बिहार में अपने “बड़े भाई” वाले रोल में मस्त थी। चुनाव लड़ो या गठबंधन बनाओ, जेडीयू हमेशा मंच के केंद्र में थी। लेकिन 2025 में हुए सीट शेयरिंग की घोषणा ने पार्टी कार्यकर्ताओं की नींद उड़ा दी है।
एनडीए का नया फार्मूला: बराबरी का खेल
पहली बात, जो सबसे ज़्यादा चौंकाने वाली है, वह यह कि जेडीयू और बीजेपी अब 101-101 सीटों पर चुनाव लड़ेंगी।
पार्टी | सीटें (2020) | सीटें (2025) |
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जेडीयू | 115 | 101 |
बीजेपी | 110 | 101 |
लोजपा (आर) | 0 | 29 |
हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा (सेक्युलर) | 6 | 6 |
राष्ट्रीय लोक मोर्चा (जितनराम मांझी) | 7 | 6 |
नोट: 2020 में जेडीयू ने “बड़े भाई” का टाइटल बड़े गर्व से पकड़ा था, लेकिन अब लगता है कि यह अब उनके हाथ से फिसल रहा है।
जेडीयू नेता कह रहे हैं, “बड़े भाई-छोटे भाई की तो बात छोड़िए, अब तो सवाल यह है कि जेडीयू बचेगा या नहीं?”
यह कहना भी कोई गलत नहीं होगा कि बीजेपी ने इस फार्मूले से जेडीयू की “सियासी हाइट” पर लंबा झटका दिया है।
लोजपा और चिराग पासवान की बड़ी एंट्री
सीट शेयरिंग में सबसे मजेदार बात यह है कि लोजपा (आर) को 29 सीटें मिली हैं। अगर कोई कहे कि “छोटा भाई बड़ा दिखा”, तो यकीन करिए, यह मामला यही है।
चिराग पासवान की चालाकी भी किसी फिल्मी कहानी से कम नहीं। 2024 के लोकसभा चुनाव में पांच सीटें जीती थीं, और अब 29 सीटें पाने में कामयाब रहे।
इतना बड़ा नंबर पाकर चिराग की पार्टी खुद को सुपरस्टार महसूस कर रही होगी।
वहीं, एनडीए के अन्य दलित नेता, जैसे जीतन राम मांझी की “हम पार्टी” और उपेंद्र कुशवाहा की राष्ट्रीय लोक मोर्चा, को सिर्फ़ 6-6 सीटें मिली हैं।
मांझी ने कहा,
“एनडीए का फ़ैसला मान रहे हैं लेकिन सिर्फ़ 6 सीटें देना गठबंधन को ही नुकसान पहुँचाएगा।”
कहीं-कहीं तो कुशवाहा की प्रतिक्रिया इतनी काव्यात्मक रही कि सोशल मीडिया वाले भी सोच में पड़ गए:
“आज बादलों ने फिर साज़िश की, जहाँ मेरा घर था वहीं बारिश हुई। अगर फ़लक को ज़िद है बिजलियाँ गिराने की, तो हमें भी ज़िद है वहीं आशियाँ बसाने की।”
वाह भाई, राजनीति में भी कविता की तड़का! 😄
जेडीयू के लिए हिचकिचाहट और बेचैनी
जेडीयू कार्यकर्ता और नेता दोनों ही इस सीट शेयरिंग फार्मूले से हताश हैं।
कुछ पुराने नेता तो ऐसे लग रहे हैं जैसे अचानक से उनकी टीवी रिमोट किसी और हाथ में चला गया हो।
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पिछले विधानसभा चुनाव (2020) में जेडीयू ने 115 सीटों पर चुनाव लड़ा था।
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इस बार केवल 101 सीटें।
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इसके बाद भी नीतीश कुमार मुख्यमंत्री बनेंगे, लेकिन उनका असर और सियासी दबदबा घटता नजर आ रहा है।
एक विश्लेषक पुष्पेन्द्र का कहना है:
“नीतीश कुमार की अब सुनी नहीं जा रही है और उनकी गिरती सेहत के चलते निर्णय लेने की स्थिति में भी नहीं हैं। ऐसे में सारा कंट्रोल बीजेपी के हाथ में है और जेडीयू के पास विरोध का कोई विकल्प नहीं है।”
जेडीयू कार्यकर्ताओं की बेचैनी को समझना मुश्किल नहीं है। सोचिए, दो दशक से “बड़े भाई” का ताज पहने रहने वाले नेता अब खुद को “बराबरी वाले भाई” की कतार में खड़ा पाते हैं।
मंत्रिमंडल विस्तार से पहले का संकेत
इस सीट शेयरिंग फार्मूले की कहानी साल 2025 की शुरुआत तक जाती है।
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फरवरी में मंत्रिमंडल विस्तार हुआ।
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सभी मंत्री बीजेपी के थे।
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जेडीयू का कोई भी नेता इसमें शामिल नहीं।
नीतीश के प्रवक्ता बार-बार यही दोहराते रहे कि पार्टी बीजेपी से ज्यादा सीटों पर चुनाव लड़ेगी, लेकिन अब वही आश्वासन हवा हो गया।
दो दशक तक बिहार की राजनीति की धुरी रहे जेडीयू के लिए यह संकेत बहुत बड़ा झटका था।
2024 का लोकसभा चुनाव: बड़े भाई की छाया में संकट
2024 के लोकसभा चुनाव में भी जेडीयू का “बड़े भाई” वाला दर्जा चुनौती में था।
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जेडीयू ने 16 सीटें लड़ीं।
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बीजेपी ने 17 सीटें लड़ीं।
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इससे पहले 2019 में दोनों ही 17-17 सीटों पर चुनाव लड़ चुके थे।
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2009 में जेडीयू ने 25 सीटें लड़ीं और बीजेपी सिर्फ 15।
2024 के चुनाव ने साफ कर दिया कि जेडीयू का “बड़े भाई” वाला टाइटल अब कमजोर पड़ रहा है।
एनडीए गठबंधन के दलों की राय
एनडीए में छोटे दलों के लिए यह सीट बंटवारा अलग तरह की चुनौती है।
दल | सीटें (2025) | प्रतिक्रिया |
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लोजपा (आर) | 29 | खुश |
हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा | 6 | नाराज़ |
राष्ट्रीय लोक मोर्चा | 6 | नाराज़ |
बीजेपी जहां खुश है और इसे “सौहार्दपूर्ण” बता रही है, वहीं छोटे दलों में नाराज़गी है।
जेडीयू प्रवक्ता नीरज कुमार ने प्रतिक्रिया में कहा:
“महागठबंधन में दरार दिख रही थी, लेकिन हमारे एनडीए में नीतीश जी और मोदी जी के नेतृत्व में सामंजस्य है। मुख्यमंत्री तो नीतीश जी होंगे, यह क्लियर है।”
महागठबंधन की स्थिति भी आसान नहीं
महागठबंधन के लिए सीट शेयरिंग की राह भी आसान नहीं दिख रही।
वीआईपी प्रमुख मुकेश सहनी ने कहा:
“महागठबंधन थोड़ा अस्वस्थ हो गया है, दिल्ली में इसके डॉक्टर मौजूद हैं।”
मतलब साफ है, बिहार की राजनीति इस बार तीखी, उलझी और रोमांचक होने वाली है।
सीटों की पूरी तस्वीर और संभावित राजनीति
एनडीए का नया सीट फार्मूला जेडीयू के लिए चिंता का सबब बन गया है।
मुख्य बिंदु:
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जेडीयू और बीजेपी अब बराबरी पर हैं।
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लोजपा (आर) की सीटें तेजी से बढ़ी हैं।
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छोटे दल नाराज़ हैं, लेकिन गठबंधन में बने रहने के लिए मजबूर।
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नीतीश कुमार की उम्र और सेहत अब राजनीतिक सवाल बन गए हैं।
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इस चुनाव में जेडीयू की भविष्य की शक्ति और स्थायित्व तय होगा।
2025 विधानसभा चुनाव बिहार की राजनीति में नया अध्याय खोल सकता है। कहीं “बड़े भाई” की जगह “बराबरी वाले भाई” का नया ताज सज सकता है, या फिर चिराग पासवान जैसी नई शक्ति अचानक स्टार बन सकती है।
जेडीयू कार्यकर्ताओं की बेचैनी: मज़ाक में कहें तो…
अगर जेडीयू कार्यकर्ताओं की भावनाओं को चार लाइन में समेटना हो, तो कुछ यूँ कह सकते हैं:
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दो दशक से बड़े भाई, अब छोटे भाई के साथ भिड़ने की स्थिति में।
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बीजेपी की मुस्कान और नीतीश की हल्की मुस्कान।
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सीटें कम, चिंता ज्यादा।
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और हाँ, चाय और समोसे के समय भी बातचीत का मुख्य विषय सिर्फ यही। 😅
निष्कर्ष
2025 विधानसभा चुनाव बिहार में सिर्फ़ सत्ता के लिए नहीं बल्कि जेडीयू की प्रासंगिकता और नीतीश कुमार की राजनीतिक विरासत के लिए भी निर्णायक साबित होंगे।
सीट शेयरिंग फार्मूला, छोटे दलों की नाराज़गी, लोजपा की बढ़ती ताकत और बीजेपी की रणनीति सभी मिलकर यह संकेत दे रहे हैं कि बिहार की राजनीति में “बड़े भाई” का दौर शायद खत्म होने की कगार पर है।
राजनीति कभी बोरिंग नहीं होती। लेकिन इस बार जेडीयू को अपनी धुरी बचाने के लिए भारी मेहनत करनी होगी। वरना, दो दशक की राजनीतिक ताकत भी कहानी बनकर रह जाएगी।